बिहार राज्य अभिलेखागार में तीन दिवसीय सेमिनार का आयोजन ।

इतिहास लेखन में अभिलेखों के महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाने को बिहार राज्य अभिलेखागार द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रथम राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र का आरंभ 08 फ़रवरी को अभिलेख के निदेशक डॉ. मो. फ़ैसल अब्दुल्लाह के स्वागत भाषण के साथ शुरु हुआ।

Feb 8, 2025 - 20:37
Feb 10, 2025 - 17:07
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बिहार राज्य अभिलेखागार में तीन दिवसीय सेमिनार का आयोजन ।
सेमिनार में दीप प्रज्वलित करते अतिथि

इतिहास लेखन में अभिलेखों के महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाने को बिहार राज्य अभिलेखागार द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रथम राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र का आरंभ 8 फ़रवरी को अभिलेख के निदेशक डॉ. मो. फ़ैसल अब्दुल्लाह के स्वागत भाषण के साथ शुरु हुआ।

अभिलेख निदेशक डॉ. अबदुल्लाह ने देश विदेश से आए इतिहासकारों का अभिवादन किया। इतिहासकारों के द्वारा मौलिक दस्तावेजों पर आधारित शोध पत्रों को इस सेमिनार के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए आभार भी व्यक्त किया । 

इस तीन दिवसीय सेमिनार का विषय था "History and Archives: The Making of Indian History-Past and Present" अभिलेख निदेशक डॉ. अबदुल्लाह ने कहा कि इतिहासकार को अभिलेखों के माध्यम से ही अतीत के सही कालक्रम एवं वस्तु स्थिति का ज्ञान मिलता है जिससे इतिहासकारों को सटीक एवं प्रमाणिक इतिहास लेखन में मदद सिलती है । बिहार विभिन्न महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है साथ ही देश के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक विकास की गाथा यहाँ से जुड़ी रही है। इस परिप्रेक्ष्य में सेमिनार का आयोजन का उद्देश्य बिहार में देश विदेश के शोधकर्ताओं को शोध कार्य के लिए यहां आने के लिए प्रोत्साहित कर Research Tourism को बढ़ावा देना है । मौलिक दस्तावेजों पर आधारित पूर्वाग्रह रहित इतिहास लेखन हेतु प्रेरित करना है। अभिलेखागार को शोधकर्ताओं के उपयोग के लिए अधिकाधिक अनुकूल बनाना एवं मौलिक दस्तावेजों के सांस्कृतिक विरासत का भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षण सुनिश्चित करना हमारा मुख्य दायित्व है।

इस तीन दिवसीय सेमिनार में विशिष्ट अतिथि निशीथ वर्मा, अपर सचिव, मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग ने कहा कि इतिहास और अभिलेखागार एक दूसरे के पूरक हैं और इतिहास लेखन में अभिलेखों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होनें कहा कि डिजिटल माध्यम से अभिलेखों को अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाने का काम किया जा रहा है जो की एक सराहनीय क़दम है । 

श्री सुमन कुमार, अपर सचिव, मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग ने विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने सम्बोधन में अभिलेखागार को अति महत्वपूर्ण संस्था बतायते हुए कहा कि अभिलेख संरक्षण के लिए बेहतर प्रयास किए जाने की ज़रूरत है जिससे जनमानस अपने अभिलेखियों धरोहर की जानकारी हासिल कर सकें।

पूर्व केन्द्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री प्रो. संजय पासवान ने अपने विशेष सम्बोधन में कहा कि इतिहास लेखन में निष्पकक्षता और वैज्ञानिक शोध की ज़रूरत है और अभिलेखों के विस्तृत विश्लेषण के बिना यह संभव नहीं हो सकता है । प्रो. संजय पासवान ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बिहार में रिसर्च टूरिज्म की अपार सम्भावना को देखते हुए इसको प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो. अमर फारूकी ने "Opium, The Colonial State and it Archive" विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए पर कहा कि ईस्ट इंडिया कंपनी का बिहार एवं बंगाल में अफ़ीम के व्यापार पर एकाधिकार रहा था। अफ़ीम के उत्पाद, वितरण एवं विक्रय की पूरी प्रक्रिया का किस प्रकार कलकत्ता से नियंत्रण एवं निरीक्षण होता था। 

डॉ. तोसाबन्ता पधान ने "Historical Archaeology of Rajgir and its surrounding regions, South Bihar" विषय पर अपने आलेख में राजगीर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की चर्चा करते हुए वर्तमान में राजगीर के विभिन्न क्षेत्रों में किए जा रहे क्षेत्र कार्य और उत्खनन स्थलों की चर्चा की, उन्होनें कहा कि राजगीर पर इतिहास लेखन को नवीन दिशा देने में इन नवीन शोधों की उपयोगिता अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

महाराजा रामेश्वर सिंह राज्य क्षेत्रीय अभिलेखागार, दरभंगा के प्रो. अब्दुल मतीन ने मिथिला के आर्थिक, राजनीतिक और समाज को जानने में वहाँ उपलब्ध मौलिक दस्तावेजों को अत्यन्त समृद्ध स्रोत बताया। उन्होनें अभिलेखागार में उपलब्ध फरमानों का उदाहरण देते हुए बताया कि किस प्रकार बिहार में कृषक संबंधित संघर्ष और विकास को जानने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। डॉ. रचना सिंह ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के समय में जेल व्यवस्था और ठगी क़ानून के संदर्भ में अभिलेखियों स्रोतों पर आधारित अभिलेख प्रस्तुत किया।

सेमिनार के दो सत्रों में कुल सत्तरह आलेख प्रस्तुत किए गए। प्रथम और द्वितीय सत्र की अध्यक्षता क्रमशः डॉ. महेश गोपालन, सह-प्राध्यापक, सेंट स्टीफेन्स कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, और डॉ. सुनीता शर्मा, सह-प्राध्यापक, पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय, पटना द्वारा की गई। सेमिनार में देश विदेश से आए इतिहासकारों प्रो. अब्दुल मतीन, प्रो. हितेन्द्र पटेल, प्रो. डॉ. गिरीश चन्द्र, प्रो. डॉ. अर्सी खान, डॉ. रचना सिंह, डॉ. राखी कुमारी, प्रो. मोहम्मद सज्जाद, डॉ. दिव्या कुमार, डॉ. शौकत ए. खान, डॉ. तोसाबन्ता प्रधान, प्रो. दानिश मोईन, खतीबुर रहमान, डॉ. सईद शाहिद, डॉ. अताउल्लाह, डॉ. अविनाश कुमार झा, डॉ. मो. खुर्शीद आलम एवं डॉ. सलीम अंसारी ने भी शोध पत्र प्रस्तुत किया।

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