मध्यकालीन बिहार के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर विस्तृत रूप से शोध कार्य नहीं हुआ है - डॉ. इम्तियाज अहमद
बिहार अभिलेखागार पटना में आयोजित तीन दिवसीय नेशनल सेमिनार में इतिहासकारों ने अपने अपने शोध पात्र पेश किये। इतिहास लेखन में अभिलेखों के महत्व के परिप्रेक्ष्य में राज्य के अभिलेखीय धरोहर के प्रति जागरूकता बढ़ाने एवं उनका संवर्धन करने हेतु बिहार राज्य अभिलेखागार द्वारा "History and Archives: The Making of Indian History-Past and Present" विषय पर आयोजित तीन दिवसीय प्रथम राष्ट्रीय सेमिनार आज सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।

बिहार अभिलेखागार पटना में आयोजित तीन दिवसीय नेशनल सेमिनार में इतिहासकारों ने अपने अपने शोध पात्र पेश किये। इतिहास लेखन में अभिलेखों के महत्व के परिप्रेक्ष्य में राज्य के अभिलेखीय धरोहर के प्रति जागरूकता बढ़ाने एवं उनका संवर्धन करने हेतु बिहार राज्य अभिलेखागार द्वारा "History and Archives: The Making of Indian History-Past and Present" विषय पर आयोजित तीन दिवसीय प्रथम राष्ट्रीय सेमिनार आज सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। सेमिनार के अंतिम सत्र में देश के प्रसिद्ध इतिहासकारों द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। सत्र की अध्यक्षता प्रो. अब्दुल मतीन सेवानिवृत्त, विजिटर प्राध्यापक, समाजशास्त्र, यू.एस.टी.एम. मेघालय ने की। अपने प्रारंभिक संबोधन में बिहार अभिलेख के निदेशक डॉ. मो. फैसल अब्दुल्लाह ने इतिहास लेखन में नई पद्धतियों के समावेश के अनुकूल बिहार राज्य अभिलेखागार के आधुनिकीकरण के कार्यों पर विस्तृत चर्चा की।
बिहार के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर विस्तृत रूप से शोध कार्य नहीं हुआ
खुदा बख्श ओरिएन्टल पब्लिक लाईब्रेरी, पटना के पूर्व निदेशक प्रो. (डॉ.) इम्तियाज अहमद ने बताया कि मध्यकालीन बिहार के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर विस्तृत रूप से शोध कार्य नहीं हुआ है। इस संदर्भ में मध्यकालीन बिहार के सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास को जानने में विदेशी वृतांतों के समुचित अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होनें कहा कि 16वीं एवं 17वीं शताब्दी में बिहार आए यूरोपियन और ईरानी यात्रियों- राल्फ फिच, पीटर मुंडी, जॉन मार्शल, मनुची के यात्रा वृतांतों में मध्यकालीन बिहार की सामाजिक परम्पराओं, मेलों, त्योहारों, मनोरंजन के साधनों, समाज के विभिन्न स्तर के लोगों के रहन-सहन, महिलाओं की भूमिका, महत्वपूर्ण नगरों एवं शहरों में विदेशियों की उपस्थिति आदि के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है जिससे इतिहास के विविध पहलूओं पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ेगा।
सैयद अली इमाम और हसन इमाम का योगदान
प्रो. जावेद आलम, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने " Muslim and the Making of Nationalist Politics in Bihar, 1908-1930" विषय पर व्याख्यान दिया। बिहार की पहली राजनीतिक संस्था बिहार प्रोविंसियल कांफ्रेस जो 1908 में अस्तित्व में आयी उसमें सैयद अली इमाम एवं उनके छोटे भाई हसन इमाम और नवाब सरफराज हुसैन खान का उल्लेख किया।
मौलिक दस्तावेज के आधार पर इतिहास लेखन
डॉ. महेश गोपालन, सह प्रध्यापक संट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा कि अभिलेखागार में उपलब्ध मौलिक दस्तावेज जिनके आधार पर इतिहास लेखन किया गया है उसकी एक सीमा रही है। मद्रास शहर के अध्ययन को एक केस स्टडी के रूप में प्रस्तुत करते हुए उन्होनें ने कहा कि एक विशिष्ट शहर किस प्रकार कम्पनी के शासन काल में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बदलाव हुए। प्रो. डॉ. आंशुमान ने अपने आलेख में इतिहास लेखन के बदलते परिप्रेक्ष्य में अभिलेखागार में अभिलेखों के संग्रह को और समृद्ध बनाने तथा इतिहास लेखन में नए विषयों पर्यावरण, जेंडर, वंचित समुदायों जैसे विषयों से संबधित अभिलेखों के संग्रह पर भी ध्यान केन्द्रित करने की बात कही।
राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में उप संग्रहाध्यक्ष सुश्री कोमल पाण्डे ने राष्ट्रीय संग्रहालय में संरक्षित पुरालेखों के आधार पर प्राचीन भारत के इतिहास लेखन के संबंध में चर्चा की। कैलाश चन्द्र झा ने इतिहास लेखन में बिहार राज्य अभिलेखागार और क्षेत्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध महत्वपूर्ण स्त्रोतों की चर्चा की। अपने समापन भाषण में दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ. रचना सिंह ने सेमिनार की उपयोगिता की चर्चा करते हुए इस तरह के आयोजनों की आवश्यकता पर बल दिया।
मंच संचालन डॉ. भारती शर्मा, पुराभिलेखपाल और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रश्मि किरण, पुराभिलेखपाल द्वारा किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में श्री उदय कुमार ठाकुर, सहायक अभिलेख निदेशक मो. असलम, डॉ. शारदा शरण, सरपंच राम, राम कुमार सिंह, पंकज कुमार, रामाशीष कुमार एवं सभी कर्मियों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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