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International Tiger Day : वाइल्डलाइफ प्रेमियों को पीएम मोदी ने दी बधाई
बाघों के सुरक्षित आवास सुनिश्चित करने देश प्रतिबद्ध
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के मौके पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वन्यजीव, वाइल्डलाइफ प्रेमियों को बधाई देते हुए बाघों के सुरक्षित रहवास की प्रतिबद्धता दोहराई।
नई दिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के मौके पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वन्यजीव, वाइल्डलाइफ प्रेमियों को बधाई देते हुए बाघों के सुरक्षित रहवास की प्रतिबद्धता दोहराई। पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा कि बाघों आवास की सुरक्षा सुनिश्चित करने, उनके इकोसिस्टम को पोषित करने हम अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं और इनके संरक्षण के प्रति सदैव सजग रहेंगे। ज्ञात रहे कि दुनिया भर में जितने बाघ हैं, उनकी कुल संख्या का 70 प्रतिशत बाघ देश में विद्यमान है।
पीएम ने आगे ट्वीट कर बताया कि देश के 18 राज्यों में 51 टाइगर रेसेर्वेस मौजूद हैं। अंतिम बाघ गणना वर्ष 2018 में हुई थी, तब बाघों में आबादी में वृद्धि हुई थी। हमारे देश को चार वर्ष पूर्व ही बाघों की आबादी को दुगुना करने का लक्ष्य प्राप्त हो चुका है। बाघों की सुरक्षा व उनके संरक्षण पर आधारित सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा पत्र में वर्ष 2022 तक उनकी संख्या दुगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इसी दौरान 29 जुलाई को वैश्विक बाघ दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। पीएम मोदी ने आगे ट्वीट कर बताया कि बाघ संरक्षण के मामले में भारत की रणनीति के अनुसार स्थानीय समुदायों की सहभागिता आवश्यक है। हम सदियों पुराने लोकाचार से प्रेरित वनस्पतियों और वन्य प्राणियों के साथ आपसी सद्भाव रखते हैं।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया की अधिकारी डा. मुदित गुप्ता और आशीष विस्टा के अनुसार भारत में वन्य प्राणियों की सुरक्षा की दृष्टिकोण से संरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं। भारत में वर्ष 2020 तक 104 राष्ट्रीय उद्यान तथा 566 वन्य जीवन अभ्यारण्य स्थापित किए जा चुके थे। भारत के पहले राष्ट्रीय उद्यान कार्बेट की स्थापना वर्ष 1936 में हुई थी, लेकिन देखा जाए तो वर्ष 1973 में जब बाघ परियोजना लागू हो गई, तब इसके संरक्षण में विशेष पहल के बाद इस क्षेत्र में मजबूती आई।
गौरतलब रहे कि बाघ हमारा राष्ट्रीय जानवर है। उसकी प्रजाति को संरक्षित करने और विलुप्त होने से बचाने के लिए बाघ दिवस मनाया जाता है। वर्ष 2010 की बात करें तो उस दौर में हमारे देश में इसकी प्रजाति विलुप्त होने के कगार तक पहुंच चुकी थी, बावजूद इसके तमाम कोशिशों के बाद इसके संरक्षण में सफलता मिल ही गई।
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