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परिवारिक जिम्मेदारियों के साथ दर्जी की बेटी उडा ले आई ओलंपिक
By Kalamlok
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भारतीय हाकी महिला टीम की डिफेन्डर निशा अहमद वारसी कहानी
उसके पास स्पोर्ट्स शूज व स्टिक खरीदने तक के पैसे नहीं थे। पिता सोहराब के पास अपनी नन्ही सी जान के लिए न जाने कई रातों तक हाथ और पैरों को रोक बिना, लोगों के कपडें सीलता रहा। बेटी के मुरादों को पूरा करने की ललक ने सोहराब को कुदरती हवाओं ने अपाहिज़ बना दिया। पैरालिसिस का शिकार सोहराब के आँखों मे बेटी की चाहत ना पूरा कर पाना जिंदगी भर का मलाल रह गया था। लेकिन सोहराब को ये न मालूम था की उसकी बेटी के सपनों मे उडने वाले पंख लग गये है। गेंद और स्टिक की चाहत ने आज सोहराब को विश्व के मानचित्र पर भारतीय हाकी महिला टीम की डिफेन्डर के रूप मे उसकी बेटी निशा अहमद वारसी का जलवा बरकरार है।
बक्सर. उसके पास स्पोर्ट्स शूज व स्टिक खरीदने तक के पैसे नहीं थे। पिता सोहराब के पास अपनी नन्ही सी जान के लिए न जाने कई रातों तक हाथ और पैरों को रोक बिना, लोगों के कपडें सीलता रहा। बेटी के मुरादों को पूरा करने की ललक ने सोहराब को कुदरती हवाओं ने अपाहिज़ बना दिया। पैरालिसिस का शिकार सोहराब के आँखों मे बेटी की चाहत ना पूरा कर पाना जिंदगी भर का मलाल रह गया था। लेकिन सोहराब को ये न मालूम था की उसकी बेटी के सपनों मे उडने वाले पंख लग गये है। गेंद और स्टिक की चाहत ने आज सोहराब को विश्व के मानचित्र पर भारतीय हाकी महिला टीम की डिफेन्डर के रूप मे उसकी बेटी निशा अहमद वारसी का जलवा बरकरार है।
कहते है प्रतिभा किसी की मोहताज नही होती है (Talent belongs to no one)। समर्पण मेहनत और लगन से किसी भी मंजिल को पाया जा सकता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है भारतीय हाकी महिला टीम की डिफेन्डर निशा अहमद वारसी ने। जहां संघर्ष के दम पर खुद के लिए नए रास्ते बनाऐ हैं। वहीं मेहनत और जज्बे से कामयाबी की इबारत लिखी। डिफेन्डर निशा अहमद वारसी की राहों मे भुख गरीबी और परिवारिक बोझ के काँटो ने जकड़ने की लाख कोशिशों की, बावजूद इसके टोक्यो ओलंपिक मे विश्व मंच पर अपने पिता सोहराब अहमद के साथ भारत का नाम उँचा कर दिया
। 2016 मे पिता सोहराब को पैरालिसिस होने के बाद माँ मेहरून को फैक्ट्री मे काम करना और दो बहने एक भाई की जिम्मेदारी ने निशा के टुटते हौसलों को गेंद और स्टिक के सहारें एक कदम और आगे बढ़ाया। और खेल के बदौलत भारतीय रेलवे मे कर्लक पद से जिंदगी की ट्रेन रूपी परिवारिक अन्य बोगियों के लिए ईजंन बन अग्रसर हुई। सात साल पहले जिस कुदरती हवाओं ने सोहराब के कंधों को बेजान कर अपने आगोश मे लेने के लिए बाहें फैलाऐ खड़ी रही उन्ही कुदरती हवाओं को निशा ने अपनी ताकत बनाकर पिता सोहराब अहमद को अपने कंधे के सहारे खडा किया। आज वहीं कुदरती हवाऐं विश्व पटल पर 2021 मे हुऐं टोक्यो ओलंपिक मे भारतीय हाकी महिला टीम के डिफेंडर के रूप मे निशा अहमद वारसी की खुशबू फैला रही है।
*मतिउर्ररहमान*
*एडीटर इन चीफ*
*कलमलोक*
*बक्सर*
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